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नज़्म
वो जवानी के नशे में लड़खड़ाती डोलती जाती हसीना
मैं हूँ इक पज़मुर्दा-ओ-पामाल सा
प्रेम कुमार नज़र
नज़्म
किस को ले कर जा रहे हैं आज यूँ नौहा-कुनाँ
रो रहे हैं आज किस को मुल्क के पीर-ओ-जवाँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
ता-हद्द-ए-नज़र जब नज़रों में जन्नत के नज़ारे होते थे
बातों में किनाए होते थे नज़रों में इशारे होते थे
नज़ीर बनारसी
नज़्म
इक अदीब-ए-नामवर इक अफ़सर-ए-आ'ली-मक़ाम
ज़ात सक्सेना है जिस की राम बाबू जिस का नाम
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
किसी की याद दिल में है कि जिस से जी निढाल है
कहूँ अगर तो क्या कहूँ अजब तरह का हाल है
अर्श मलसियानी
नज़्म
बा'द इक अर्से के जब उस को क़रार आया
हवास-ए-मुंतशिर को मुजतमा' करने का वक़्त आया
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
जज़्ब-ए-इफ़्फ़त का मयस्सर था जो इरफ़ाँ तुझ को
क्यूँ न मर्ग़ूब हुआ शेवा-ए-जानाँ तुझ को
अख़्तर शीरानी
नज़्म
तुम ने लिक्खा है मिरे ख़त मुझे वापस कर दो
डर गईं हुस्न-ए-दिल-आवेज़ की रुस्वाई से
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
मैं मुनाफ़िक़ हूँ हर इक का दोस्त बन जाता हूँ मैं
दोस्त बन कर दोस्तों में फूट डलवाता हूँ मैं
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
अपने आँचल पे सितारों से मिरा नाम न लिख
मैं तिरा ख़्वाब हूँ पलकों में सजा ले मुझ को
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
मशरिक़ का दिया गुल होता है मग़रिब पे सियाही छाती है
हर दिल सन सा हो जाता है हर साँस की लौ थर्राती है
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
वो परस्तारान-ए-आज़ादी शहीदान-ए-वतन
ज़ीनत-ए-हिन्दोस्ताँ होना था जिन का बाँकपन